अमेरिका हो या उत्तराखंड जंगल में भड़की आग बुझती क्यों नहीं है भाई! क्या विज्ञान फेल हो गया है?

नई दिल्ली: उत्तराखंड के जंगल धू-धूकर जल रहे हैं। हालत यह है कि 24 घंटे में अगलगी की 24 घटनाएं सामने आई हैं। उत्तराखंड की आग ने अमेरिकी राज्य कैलिफॉर्निया में हाल में हुई वारदात की याद दिला दी है। कैलिफॉर्निया में भी आग से कई दिनों तक दहशत का माह

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नई दिल्ली: उत्तराखंड के जंगल धू-धूकर जल रहे हैं। हालत यह है कि 24 घंटे में अगलगी की 24 घटनाएं सामने आई हैं। उत्तराखंड की आग ने अमेरिकी राज्य कैलिफॉर्निया में हाल में हुई वारदात की याद दिला दी है। कैलिफॉर्निया में भी आग से कई दिनों तक दहशत का माहौल रहा जिसकी चर्चा दुनियाभर में होती रही। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली तो जंगल की आग पर जल्द काबू पाने में हम असफल क्यों रहते हैं? भारत तो फिर विकासशील देश है, लेकिन अमेरिका तो सुपर पावर है, फिर भी कैलिफॉर्निया के जगंलों में इतने लंबे समय तक आग क्यों फैलती रही? क्या विज्ञान के इतने विकास के बावजूद हमारे पास वो तकनीक हाथ नहीं लग सकी है जिससे जंगल की आग को कुछ घंटों में ही काबू कर लिया जाए?

उत्तराखंड के जंगलों में लगातार फैल रही है आग

उत्तराखंड के विभिन्न जंगलों में आग की कई घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। प्रदेश में नवंबर से अब तक 910 घटनाएं सामने आ चुकी हैं। प्रदेश में 1,145 हेक्टेअर से अधिक वन क्षेत्र में लगी आग ने अब तक पांच जिंदगियां लील ली हैं जबकि पांच अन्य लोग उसकी चपेट में आकर आंशिक रूप से जल गए हैं। पहली आग लगभग छह महीने पहले भड़की थी और अब तक फैल ही रही है। ऐसे में कहा जा सकता है कि उत्तराखंड की भयावहता भी कैलिफॉर्निया के जंगल की आग से अलग नहीं है।

क्यों फैलती रहती है जंगल की आग, ये बातें जान लीजिए

दरअसल, उत्तराखंड में लगी आग, दुनिया भर में लगी आग की तरह ही, कई कारकों के कारण महत्वपूर्ण चुनौतियां पेश करती है। जंगल का इलाका ऊबड़-खाबड़ और खड़ी ढलान वाला है जहां घनी वनस्पतियां हैं। इस कारण प्रभावित क्षेत्रों तक पहुंचने और वहां इधर से उधर आ-जा पाना आसान नहीं है। उत्तराखंड में कई वन क्षेत्रों की तरह अक्सर सूखे और तेज हवाएं चलती हैं, जो जंगल की आग को भड़काने में काफी मददगार होती हैं। सूखी वनस्पति आग के लिए ईंधन का काम करती है, जबकि तेज़ हवाएं तेजी से लपटों और अंगारों को आगे बढ़ाती हैं, जिससे आग अप्रत्याशित रूप से और बड़े क्षेत्रों में फैल सकती है।

➤ उत्तराखंड के वन अधिकारियों ने भी आग के तेजी से फैलने का कारण तेज हवाओं को बताया जिसने इसे क्राउन फायर में बदल दिया है।

➤ अधिकारियों ने कहा कि उत्तराखंड में जंगल की आग की घटनाएं मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों के कारण होती हैं। उन्होंने कहा कि स्थानीय लोग कभी-कभी कृषि या पशुधन चराने के लिए क्षेत्रों को खाली करने के लिए घास के मैदानों में आग लगा देते हैं। इससे अनजाने में बड़ी जंगल की आग भड़क जाती है।

➤ अधिकारियों ने बताया कि इसके अलावा, इस प्री-मानसून सीजन में कम बारिश के कारण मिट्टी की नमी की कमी और जंगल में मौजूद सूखी पत्तियों, चीड़ की सुइयों और अन्य ज्वलनशील पदार्थों की उपस्थिति ने भी ऐसी घटनाओं में योगदान दिया है।

➤ उत्तराखंड के चमोली पुलिस ने गैरसैण इलाके में स्थित एक जंगल में आग लगाने के आरोप में तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। आरोप है कि इन लोगों ने कथित तौर पर जंगल में लगी आग की घटना का वीडियो रिकॉर्ड किया और सोशल मीडिया पर लाइक, व्यू और फॉलोअर्स बढ़ाने के लिए शेयर कर दिया।


तो क्या जंगल की आग के आगे विज्ञान फेल है?

हालांकि आग बुझाने के लिए तकनीक मौजूद है, लेकिन जंगल की विशेष परिस्थितियों के कारण ये बहुत कारगर साबित नहीं हो पातीं। उदाहरण के लिए, पानी की बाल्टियों या टैंकों से लैस हेलीकॉप्टर आग की लपटों और हॉटस्पॉट पर पानी गिराने में सहायक हो सकते हैं, लेकिन उनका उपयोग उपलब्धता, मौसम की स्थिति और जल स्रोतों की पहुंच जैसे कारकों से सीमित हो सकता है। इसी तरह, जंगल की आग की प्रगति को धीमा करने के लिए विशेष अग्निरोधी रसायनों का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन इसके इस्तेमाल में कई तरह की समस्याएं हैं।

बात सिर्फ आग की लपटों पर काबू पाने की नहीं

अग्निशामक तकनीक की उपलब्धता के बावजूद जंगल की आग से निपटने के लिए अक्सर बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है जो केवल लपटों को बुझाने से कहीं आगे तक जाती है। इन रणनीतियों में अग्निरोधक क्षेत्र तैयार करना है। अग्निरोधक क्षेत्र वो इलाके होते हैं जहां बिल्कुल सफाई होती है, कोई जंगल-झाड़ नहीं ताकि वहां आग पकड़ने या वहां से आग बढ़ने की कोई गुंजाइश नहीं रहे। इसी तरह, गर्मी आने से पहले आसानी से आग पकड़ने वाले इलाकों में छोटे पैमाने पर आग लगाकर झाड़ियों को जला देने से भी बड़ी आगे का वाहक खत्म हो जाता है।

इन तरकीबों से होते हैं आग पर काबू पाने के प्रयास

जमीनी स्तर पर काम करने वाली अग्निशमन टीमें जंगल की आग से सीधे निपटने में अहम भूमिका निभाती हैं। वो अक्सर आग की लपटों को दबाने और आगे के इलाकों की सुरक्षा के लिए हाथ के औजार, पाइप और आग को रोकने वाले फोम जैसे औजारों का इस्तेमाल करती हैं। इसके अलावा हेलीकॉप्टर, एयर टैंकर और ड्रोन आदि से पानी या आग रोकने वाले अन्य पदार्थों को प्रभावित इलाकों में पहुंचाया जाता है। साथ ही, आग कैसा रुख अपना सकती है, इसका आकलन करने और जिन क्षेत्रों में प्राथमिकता से जरूरी कदम उठाए जाने हैं, उनकी पहचान करने के लिए टोही मिशन भी चलाया जाता है।

हालांकि, अग्निशमन कर्मियों और संसाधनों के सामूहिक प्रयासों के बावजूद जंगल में तेजी से फैलती आग को बुझाना एक लंबी और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया हो सकती है। आग कितनी भीषण है, मौसम की स्थिति कैसी है और आग बुझाने के संसाधन कैसे हैं, इन सब कारकों से तय होता है कि आग पर काबू पाना कितना कठिन या आसान होगा। कुल मिलाकर कहें तो जंगल की आग को नियंत्रित करने में अक्सर उपयुक्त संसाधन, रणनीतिक योजना और अनुकूल परिस्थितियों के मिले-जुले कारकों की भूमिका होती है।

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मनोज शर्मा

मनोज शर्मा (जन्म 1968) स्वर्णिम भारत के संस्थापक-प्रकाशक , प्रधान संपादक और मेन्टम सॉफ्टवेयर प्राइवेट लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं।

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